Tuesday, June 9, 2009

बरखा रानी....!

"बरखा रानी ! आओ ना, आ जाओना, इतना भी तरसाओ ना, ...के इंतज़ार है एक 'शम्म' को तुम्हारा...के इंतज़ार है, इस क़ुदरत के हर पौधे, हर बूटेको, तुम्हारा... के तुमबिन सरजन हार कौन है इनका?के तुमबिन पालन हार कौन है इनका?"

चंद रोज़ पूर्व, अपने "बागवानी" ब्लॉग पे कुछ लिखा तथा अंत में "बरखा रानी से " ये दरख्वास्त की...उसी शाम वो हाज़िर हो गयीं...माहौल धुला और क़ुदरत ने एक पन्ने का जामा पहना !
आमंत्रण है आप सभीको उस ब्लॉग पे...ये ब्लॉग, केवल मालूमात नही है, ज़िंदगी के प्रती, यादों से घिरा नज़रिया है...
एक साल पहले " बागवानी की एक शाम " ये आलेख लिखा था..इत्तेफाक़न वो पर्यावरण दिवस था..अन्य पौधों के अलावा, एक चम्पे की डाल भी लगाई थी, जिसपे पहली बार ४/५ दिन पूर्व फूल खिले !

इन दो शामों में एक दिलको कचोट ने वाला फ़र्क़ है...जिसे आप मेरे आलेख मे ही पढ़ें...जो,

http://shamasansmaran.blogspot.com

इस ब्लॉग पेभी डाल दिया...डाले बिना रहा नही गया....

http://shama-baagwaanee.blogspot.com

2 comments:

Unknown said...

bahut achha
bahut khoob!

Pradeep Kumar said...

शमा जी,
इतने अच्छे और बेलाग कमेन्ट के लिए धन्यवाद !
बेशक आपकी बात सही है . कि इस रचना में "तुम्हारे बिन " वाली बात नहीं है . यूं तो इसके बहुत से कारण हो सकते हैं मगर में तो ये मानता हूँ कि इस रचना का विषय ही अलग था जबकि तुम्हारे बिन" विरह कि कविता है . जहां तक मैं मानता हूँ कि -
वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान , निकल कर आँखों से चुपचाप , बही होगी कविता अनजान .
मतलब ये कि विरह कि कविता में दिल के उदगार होते हैं जब कि ऐसी रचना में कुछ दिमाग से भी लिखना पड़ता है. मेरा तो यही मानना है सही क्या है ये तो आप जैसे कविता के जानकार ही bataa सकते हैं . फिर भी आइन्दा कोशिश करूंगा कि कविता का स्तर बना रहे .
माता जी बधाई सर माथे !
निजी व्यस्तता के कारण जवाब बहुत देर से लिख पाया इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ .
एक बात और मैंने आपको एक सुझाव दिया था कि ( वही कहानी के अंत के बारे में ) कि हर ब्लॉग में एक मेसेज छोड़कर या एक नया ब्लॉग बनाकर ऐसा किया जा सकता है उसका लिंक आप दोस्तों को मेल कर सकती हैं . शायद कुछ बात बने और अच्छा रेस्पोंस मिले . आपने उसका कोई जवाब ही नहीं दिया . शायद सुझाव पसंद नहीं आया ?