Saturday, September 5, 2009

इस तरह आ..

सुन मौत!तू इसतरह आ
हवाका झोंका बन,धीरेसे आ!
ज़र्रे की तरह मुझे उठा ले जा
कोई आवाज़ हो ना
पत्ता कोई बजे ना
चट्टानें लाँघ के दूर लेजा !
मेरे प्रीतम की तरह आ,
मुझे बाहों में उठा ले,
पलकों को चूम ले,
माँग में मोती भर,
मेरी माँग चूम ले!
किसीको पता लगे ना
डाली कोई हिले ना
आ,मेरे पास आ,
एक सखी बन के आ,
थाम ले मुझे
सीनेसे लगा ले,
गोदीमे सुला दे,
थक गयी हूँ बोहोत,
मीठी सी लोरी,
गुनगुना के सुना दे!
मेरी माँ बन के आ ,
आँचल मे छुपा ले !
आ,तू आ, गलेसे लगा ले...

13 comments:

रश्मि प्रभा... said...

तू इसतरह आ
हवाका झोंका बन,धीरेसे आ!
ज़र्रे की तरह मुझे उठा ले जा
कोई आवाज़ हो ना
पत्ता कोई बजे ना
चट्टानें लाँघ के दूर लेजा !atyant khoobsurat maut hogi yah,waah

Chandan Kumar Jha said...

सुन्दर भाव………………………बहुत अच्छी लगी कविता। आभार

अर्चना तिवारी said...

रचना तो अच्छी है ..भावपूर्ण..पर यह क्या शमा...मौत को क्यों बुला रही हो..मौत तो एक दिन हम सभी को आनी है.. आसान है..मुश्किल है जीवन जीना...तो ....god bless you!!

Yogesh Verma Swapn said...

kya kahun?

shama said...

इतनाही कहूँगी ...जब भी मौत आए ,इस तरह आए ...! किसीके बस में तो न मौत है न ज़िंदगी.. ...लेकिन एक ख्वाहिश है , जबसे जीनेका मतलब जाना तभीसे ...गर जीवन सुंदर है ,तो मौत भी क्यों न सुंदर हो ?

Unknown said...

बधाई !

M VERMA said...

सुन मौत!तू इसतरह आ
हवाका झोंका बन,धीरेसे आ!
मौत क्यो जिन्दगी क्यो नही?
-------------------
सुन ज़िन्दगी!तू इसतरह आ
हवाका झोंका बन,धीरेसे आ!

vandana gupta said...

aapki is kavita ko padhkar anand movie ka wo dialogue yaad aa gaya jahan rajesh khanna kahte hain............
maut tu ek kavita hai

aapne maut ko bahut hi khoobsoorti se baandha hai jise padhkar shayad maut ko bhi lage ki maut ho to aisi.

Prem said...

कितना सुंदर लिखती हैं आप ,वाह जैसे मेरे मन की बात कह रही हैं ,बहुत अच्छा लगता है आप की कवितायें पढ़ कर ,बस टिप्पणी भेजने में देर करती हूँ ,पढने में नहीं .हार्दिक शुभकामनायें ।

Dr. Amarjeet Kaunke said...

मौत की जगह जिंदगी को
इस तरह शिद्दत से बुलाओ
तो वो भी आ जाएगी....
बहुत सुंदर कविता.......

वन्दना अवस्थी दुबे said...

रचना तो सुन्दर है लेकिन मौत का आह्वान क्यों? खुदा करे वो कभी न आये.

shama said...

Vandanaji,
एक इल्तिजा है , जिसे ज़िंदगी सुने तभी तो पूरी होगी ...! ज़िंदगी की इजाज़त न हो तो मौत की क्या मजाल ! खूबसूरत मौत हो , चाहे जब हो ..ये तो जिन्दगीका अन्तिम सत्य है ...
हम अपनी ',manufacturing date' तो जानते हैं , 'expiry',किसने जानी ??? जब कभी हो,ऐसी हो, बस ऐसा ही हो......इतनी ही दुआ!

अविनाश वाचस्पति said...

मौत का इक दिन मुअय्यन है
जिस दिन आना है
जैसे आना है
बन जाना इक बहाना है
हमारी चाहे ना ना है
पर उसकी हां के आगे
चली किसकी जानां है।